Haryana news: हरियाणा के 12 नए जिलों में खुलेंगे लेबर कोर्ट, इन लोगों का होगा फायदा

Top Haryana: हरियाणा सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए राज्य के 12 नए जिलों में लेबर कोर्ट (श्रम न्यायालय) खोलने की मंजूरी दे दी है। इस बारे में जानकारी हरियाणा के गृह एवं श्रम मंत्री अनिल विज ने दी। उन्होंने बताया कि औद्योगिक क्षेत्रों में लगातार बढ़ रही गतिविधियों और मजदूरों से जुड़े विवादों की संख्या को देखते हुए यह फैसला लिया गया है।
इंतजार अब नहीं करना पड़ेगा लंबा
अनिल विज ने कहा कि अब श्रमिकों को अपने हक और न्याय के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। नए लेबर कोर्ट बनने से न्याय प्रक्रिया तेज और आसान हो जाएगी। इससे मजदूरों को अपने ही जिले में न्याय मिलेगा और उन्हें दूसरे शहरों में भटकना नहीं पड़ेगा।
नए कोर्ट इन जिलों में खुलेंगे
सरकार ने जिन 12 जिलों में नए लेबर कोर्ट खोलने का निर्णय लिया है, उनके नाम हैं पंचकूला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल, जींद, सिरसा, महेंद्रगढ़, भिवानी, चरखी दादरी, फतेहाबाद और नूंह। इन जिलों में अब स्थानीय स्तर पर ही श्रमिक और मालिक के बीच के विवादों को सुलझाया जाएगा।
अब कुल 26 लेबर कोर्ट होंगे
इस समय हरियाणा में 14 लेबर कोर्ट काम कर रहे हैं। जब ये 12 नए कोर्ट शुरू हो जाएंगे, तो कुल संख्या 26 हो जाएगी। सरकार का लक्ष्य है कि हर बड़े औद्योगिक क्षेत्र में कम से कम एक लेबर कोर्ट जरूर हो, ताकि मजदूरों को आसानी से न्याय मिल सके।
लंबे समय से थी मांग
लेबर कोर्ट की संख्या बढ़ाने की मांग काफी समय से हो रही थी। खासकर सिरसा, कैथल, महेंद्रगढ़ और नूंह जैसे जिलों में मजदूरों को न्याय के लिए दूर-दूर तक जाना पड़ता था। यह फैसला उनके लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है।
लेबर कोर्ट क्या करते हैं?
लेबर कोर्ट ऐसे विशेष न्यायालय होते हैं जिन्हें राज्य सरकार श्रमिकों और उद्योगों के बीच विवाद सुलझाने के लिए बनाती है। यहां जिन मामलों की सुनवाई होती है, उनमें नौकरी से निकाले गए कर्मचारियों की शिकायतें, वेतन को लेकर विवाद, काम की शर्तों में बदलाव या उल्लंघन, बोनस, छुट्टी और वेतन बढ़ोतरी से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं। इन कोर्ट में मामले सामान्य अदालतों से तेजी से और श्रमिक हित को ध्यान में रखकर निपटाए जाते हैं।
सरकार की सोच
हरियाणा सरकार का कहना है कि उसका मकसद है न्याय में देरी नहीं, सुविधा में तेजी। सरकार लेबर कोर्ट को न केवल कानून के नजरिए से, बल्कि सामाजिक कल्याण के तौर पर भी देख रही है। यह फैसला श्रमिक वर्ग के लिए न्याय तक आसान पहुंच बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
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