Navy Recruitment Controversy: दीपक सिंह को हाई कोर्ट से मिला न्याय, 2.5 लाख रुपये मिलेगा मुआवजा
Top Haryana: अदालत ने साफ किया कि किसी भी भर्ती एजेंसी को यह अधिकार नहीं है कि वह सिर्फ अयोग्य लिखकर उम्मीदवार की उम्मीदवारी खत्म कर दे। कोर्ट ने कहा कि जब तक पारदर्शिता और ठोस कारण नहीं दिए जाते तब तक किसी उम्मीदवार को खारिज करना न्यायसंगत नहीं माना जाएगा।
मामला कैसे शुरू हुआ?
यह मामला दीपक सिंह नामक युवक से जुड़ा है, जिसने साल 2018 में भारतीय नौसेना में सीनियर सेकेंडरी रिक्रूट पद के लिए आवेदन किया था। दीपक ने लिखित परीक्षा पास की और इसके बाद शारीरिक दक्षता परीक्षण (Physical Fitness Test) में हिस्सा लिया। इस टेस्ट में 1.6 किलोमीटर की दौड़ 7 मिनट में पूरी करनी थी 20 स्क्वैट्स और 10 पुश-अप्स करने थे।
मैदान से बाहर भेजा गया उम्मीदवार
दीपक सिंह का कहना है कि उसने दौड़ और स्क्वैट्स अच्छे से पूरे कर लिए थे। जैसे ही उसने पुश-अप्स शुरू किए वहां मौजूद एक परीक्षक ने बिना कोई कारण बताए उसे मैदान से बाहर जाने के लिए कह दिया। दीपक ने तुरंत लिखित रूप में स्पष्टीकरण मांगा और बाद में कई बार पत्राचार किया लेकिन नौसेना की तरफ से उसे कभी कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला।
नौसेना की दलील
अदालत में नौसेना ने कहा कि दीपक को मानक नियमों के तहत अयोग्य घोषित किया गया था और उसके साथ अन्य 16 उम्मीदवार भी असफल हुए थे। नौसेना के रिकॉर्ड में केवल अयोग्य शब्द लिखा था जबकि यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि वह किस हिस्से दौड़, स्क्वैट्स या पुश-अप्स में असफल हुआ।
कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस विनोद एस. भारद्वाज ने सुनवाई के बाद कहा कि जब कोई भर्ती एजेंसी अपने निर्णय के आधार को ही छिपा ले और उम्मीदवार को सही कारण न बताए तो यह प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं कही जा सकती। अदालत ने माना कि इस रवैये से उम्मीदवार के अधिकारों का हनन हुआ है।
अब भर्ती का मौका खत्म
चूंकि यह मामला सात साल पुराना है इसलिए अब दीपक सिंह अधिकतम आयु सीमा पार कर चुका है। यानी उसके लिए नौसेना भर्ती में शामिल होना संभव नहीं है। इसी कारण कोर्ट ने यह माना कि अब उसे नौकरी तो नहीं दी जा सकती लेकिन न्याय के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए।
2.5 लाख रुपये का मुआवजा
हाई कोर्ट ने नौसेना को आदेश दिया कि दीपक सिंह को 2 लाख 50 हजार रुपये का मुआवजा दिया जाए। अदालत ने यह भी दोहराया कि भर्ती प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता बेहद जरूरी है। बिना वजह और ठोस कारण बताए किसी भी उम्मीदवार को खारिज करना भविष्य में स्वीकार्य नहीं होगा।