top haryana

Maharishi Durvasa: समुद्र मंथन होने की असली वजह क्या है, जानें यह सच्ची कहानी 

Maharishi Durvasa: हिंदू ग्रंथों में ऐसी कई कथाएं मिलती हैं जो व्यक्ति को शिक्षा देने के साथ-साथ हैरानी में भी डाल सकती हैं। आज हम आपको विष्णु पुराण में वर्णित एक ऐसी ही कथा के बारे में बताने जा रहे हैं, आइए जानें इसके बारें में विस्तार से...
 
समुद्र मंथन होने की असली वजह क्या है
Ad

Top haryana: महर्षि दुर्वासा (Maharishi Durvasa curse) ऋषि अत्रि और अनुसूया के पुत्र थे, जिन्हें मुख्य रूप से उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। एक बार उनका क्रोध देवताओं को भी झेलना पड़ा था, जिसके परिणामस्वरूप समुद्र मंथन भी हुआ। चलिए जानते हैं इस कथा के बारे में।

दिया था ये श्राप

विष्णु पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवराज इंद्र को पारिजात फूलों की माला भेंट की, लेकिन देवराज इंद्र ने अभिमान में आकर यह माला अपने हाथी ऐरावत को पहना दी। लेकिन देवराज इंद्र ने अनजाने में यह माला स्वयं आवरण न कर अपने हाथी ऐरावत को पहना दी।

दिव्य फूल का स्पर्श पाकर ऐरावत चंचल हो उठा। उसकी चंचलता के चलते वह भूमि पर गिर पड़ा। यह देख महर्षि दुर्वासा उनपर क्रोधित हो गए और उन्होंने इंद्र देव को श्राप दिया कि स्वर्ग लक्ष्मी विहीन हो जाएगा। स्वर्ग के लक्ष्मी विहीन होने के चलते देवताओं की शक्ति क्षीण हो गई। साथ ही स्वर्ग का ऐश्वर्य खो गया।

यह जान असुरों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर अपना अधिपत्य जमा लिया। इससे परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और असुरों से रक्षा करने और स्वर्ग को लक्ष्मी युक्त करने की मांग की। इसपर भगवान विष्णु ने सभी देवताओं को समुद्र मंथन करने की सलाह दी और कहा कि समुद्र मंथन से अमृत की उत्पत्ति होगी, जिसका पान कर सभी देवता अमर हो जाएंगे।

कहां होता है कुंभ का आयोजन

विष्णु जी के कहे अनुसार देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया, जिसके लिए वासुकि नाग को रस्सी और मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया गया। इस मंथन के दौरान कई तरह के बहुमूल्य रत्न उत्पन्न हुए, जिन्हें देवताओं और असुरों ने आपसी सहमति से बांट लिया गया, लेकिन जब अमृत की बारी आई, तो इसका सेवन करने के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया। अमृत पाने की खींचतान में इसकी की कुछ बूंदें धरती पर गिर पड़ीं।

कहा जाता है कि अमृत की बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गिरी थी। आज इन्हीं चार स्थानों पर हर 12 साल के अंतराल में महाकुंभ का आयोजन होता है। इसलिए कहा जा सकता है कि महर्षि दुर्वासा का श्राप समुद्र मंथन की वजह बना। अंत में भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर सभी देवताओं को अमृत पिला दिया। इससे देवता अमर हो गए और उन्हें उनकी शक्तियां वापस मिल गई।