Holi 2025: सबसे पहले किसने खेली थी होली, जानें इसके पीछे का इतिहास
Holi 2025: हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में होली का नाम भी शामिल है, रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से पूरे देश में सबसे धूमधाम से मनाया जाता है।

Top Haryana-New Delhi Desk: होली का पर्व रंग, उमंग और उत्साह का त्योहार है, पूरे देश में होली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, यह त्योहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है, इस साल होली 14 मार्च को है, होली भारत के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है।
होली की शुरुआत कब हुई थी, इस बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है, होली से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं मिलती है, जिसमें राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती कामदेव और राक्षसी धुंधी से जुड़ी कथा शामिल है।
हिराण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा
होली की ये कथा सबसे अधिक प्रचलित है, हिराण्यकश्यप दैत्यों का राजा था, उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की और उनसे वरदान पाकर बहुत शक्तिशाली हो गया था, हिराण्यकश्यप जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु से नफरत करता था, वो भगवान विष्णु को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता था क्योंकि वाराह अवतार में भगवान विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था।
हिराण्यकश्यप के राज में भगवान विष्णु की पूजा तक वर्जित थी लेकिन उसका अपना पुत्र प्रहलाद भगवान का परम भक्त था, जिसके चलते उसने अपने पुत्र कई यातनाएं दी और मारने के भी कई प्रयास किए, अंत में उसने प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वो प्रहलाद को अग्नि पर लेकर बैठ जाए।
होलिका को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसको नहीं जलाएगी लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका जल गई, तब से ही हर साल होलिका दहन किया जाने लगा।
राधा-कृष्ण की होली
होली के त्योहार का संबंध भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी से भी है, कथा के मुताबिक एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माता यशोदा से पूछा कि मां राधा इतनी गोरी है, फिर मैं इतना काला क्यों हूं।
माता यशोदा ने मजाक में उनसे ये बात कही की कान्हा तुम जाकर राधा को अपने जैसा रंग लगा दो, फिर क्या था भगवान श्रीकृष्ण पहुंच गए राधा रानी और उनकी सखियों को रंग लगाने, उन्होंने राधा रानी और उनकी सखियों को जमकर रंग लगाया, इस प्रकार से होली मनाने की परंपरा की शुरुआत हो गई।
शिव-पार्वती और कामदेव की कथा
संसार की पहली होली थी, वो भगवान भोलेनाथ ने खेली थी, एक बार भगवान कैलाश पर्वत पर साधना में लीन थे, तभी कामदेव ने उनकी साधना भंग कर दी, क्रोधित महादेव ने अपना त्रिनेत्र खोल दिया और कामदेव भस्म हो गए, जिसके बाद कामदेव की पत्नी रती बहुत दुखी हुईं और उन्होंने भगवान से अपने पति को दोबारा जीवन देने की प्रार्थना की।
भगवान शिव ने रती की विनती स्वीकार की और कामदेव को फिर जीवित किया, इसी खुशी में उत्सव मनाया गया, जिसमें सभी देवी-देवता शामिल हुए, ये उत्सव फाल्गुन माह की पूर्णिमा के मनाया गया, जिसके बाद में होली के रूप में मनाने लगे।
राक्षसी धुंधी की कथा
एक नगर में पृथु नाम के राजा थे, उनके समय में धुंधी नाम की राक्षसी हुआ करती थी, वो बच्चों को खाती थी, उसका वध कोई नहीं कर सकता था लेकिन बच्चे जो शरारत करते थे उससे राक्षसी को खतरा था।
फाल्गुन माह की पूर्णिमा पर बच्चों ने आग जलाई और राक्षसी पर कीचड़ फेंककर शोर मचाया, इससे राक्षसी नगर छोड़कर भाग खड़ी हुई, माना जाता है कि तब से ही होलिका दहन और धूलिवंदन करने की परंपरा की शुरुआत हो गई।