Makhana crop: मखाना को ब्लैक डायमंड क्यों कहा जाता है, जानें
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Top Haryana: मखाने के विनिर्माण और खेती को लेकर लेकर मोदी सरकार बहुत संजीदा नजर आ रही है। बजट में भारतीय सरकार ने बिहार में मखाना बोर्ड कि संरचना का ऐलान किया है। 24 फरवरी को बिहार के भागलपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मखाना सुपरफूड है, इसे पूरी दुनिया के बाजारों में पहुंचाना है। किसानों के लिए मखाने की खेती करना बहुत कारगर और लाभदायक साबित हो सकती है। क्या आप जानते हैं कि मखाने की खेती किस प्रकार की जाती है, यह कितनी लाभदायक, इसकी कीमत क्या है? आइये हम आपको मखाने की खेती के बारे में बताते है...
मखाने को क्यों कहा जाता ‘ब्लैक डायमंड’
मखाना, जिसे अंग्रेजी में फॉक्स नट के नाम से भी जाना जाता है। यह कांटेदार गोरगन पौधे का सूखा हुआ खाद्य बीज है. यह पौधा दक्षिण और पूर्वी एशिया में मीठे पानी के तालाबों में पाया जाता है। मखाना के पौधे का खाने वाला भाग छोटे, गोल बीजों से बना होता है, इसकी बाहरी परत काले और भूरे रंग की होती है, इसलिए इसे ब्लैक डायमंड’ भी कहा जाता है। यह एक महंगी वाणिज्यिक फसल है।
प्रोटीन और मिनरल से भरपूर मखाना
मखाना एक पौष्टिक ड्रायफ्रूट है, जो हमारे शरीर को प्रोटीन और मिनरल देता है। मेडिक हेल्थकेयर और न्यूट्रिशन वैल्यू को लेकर मखाने का सेवन व इस्तेमाल विभिन्न प्रकार से किया जाता है ।
खेती के लिए कैसी जलवायु की जरूरत ?
मखाना एक जलीय कृषि है यह मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है। मुख्य रूप से इसकी खेती तालाबों, झीलों, खाइयों या 4-6 फीट तक की उथली पानी की गहराई वाले दलदली भूमि जैसे स्थिर जल निकायों में की जाती है।मखाने की फसल 125 दिन में तैयार हो जाती है। मखाने की कृषि बिहार में कि जाती है। इसके अलावा असम, मणिपुर, त्रिपुरा और ओडिशा में भी की जाती है. बिहार मखाना का सबसे बड़ा शिल्पकार है, लेकिन यह घरेलू और विश्व के बाजार कि बढ़ती मांग को पूरा करने में विफल रहा है। पंजाब और भारत में मखाना के सबसे बड़े निर्यातक हैं।
कितनी फायदेमंद मखाने की खेती
मखाने का प्रयोग मुख्य रुप से स्नैक्स के रूप में किया जाता है। मखाने की कृषि करना कितने बड़े लाभ का सौदा है इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है, कि जहां भारत में प्रति एक किलो मखाने का भाव 1 हजार 600 रुपये है, वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 8 हजार रुपये प्रति किलो है।