High Court News: विधवा बहु से क्या सास-ससुर वापस ले सकते है प्रॉपर्टी, हाईकोर्ट!
Bombay High Court News: बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाया, जिसमें सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल द्वारा एक आदेश को खारिज किया गया। इस मामले में ट्रिब्यूनल ने एक विधवा महिला को गिफ्ट में मिली संपत्तियों को उसके सास-ससुर (माता-पिता) को वापस करने का आदेश दिया था और साथ ही गुजारा भत्ता देने की बात भी की थी...

Top Haryana: बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान ट्रिब्यूनल के आदेश को खारिज कर दिया। कोर्ट ने इस फैसले में कई पहलुओं पर विचार किया और विधवा महिला के अधिकारों की रक्षा करते हुए यह स्पष्ट किया कि गिफ्ट की गई संपत्तियां वापस करने का आदेश नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने यह भी माना कि विधवा महिला को अपने सास-ससुर को गुजारा भत्ता देने का कोई कानूनी दायित्व नहीं है...
इस मामले की शुरुआत तब हुई जब महिला के पति का निधन हो गया और उसे उसके सास-ससुर द्वारा गिफ्ट की गई संपत्ति में से कुछ हिस्सा सौंपने को कहा गया। ट्रिब्यूनल ने यह आदेश दिया था कि विधवा महिला को उन संपत्तियों को माता-पिता को वापस कर देना चाहिए और साथ ही उनकी देखभाल के लिए गुजारा भत्ता देना चाहिए।
1996 में, एक मुंबई स्थित दंपति ने अपने बड़े बेटे को अपने व्यापार में पार्टनर बनाया। बेटे ने बाद में अपनी पत्नी के साथ दो कंपनियां शुरू कीं और अपनी कमाई से कई संपत्तियां खरीदीं। 2013-14 में, दंपति ने कुछ संपत्तियां अपनी बहू (बेटे की पत्नी) को गिफ्ट दीं। 2015 में बेटे की मौत के बाद, इन संपत्तियों का स्वामित्व बहू के पास आ गया। जब बहू ने इन संपत्तियों में हिस्सेदारी देने से इनकार किया, तो दंपति ने सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल में केस किया। ट्रिब्यूनल ने गिफ्ट डीड को रद्द करते हुए, बहू को संपत्तियां माता-पिता को लौटाने का आदेश दिया और उसे गुजारा भत्ता देने का भी आदेश दिया।
बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल के पास गिफ्ट डीड रद्द करने का अधिकार नहीं था। यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता था।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बहू पर गुजारा भत्ता देने का कानूनी दायित्व नहीं है, क्योंकि वह बच्चों के लिए बनाए गए "मेंटीनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट" की परिभाषा के तहत नहीं आती। हालांकि, यदि यह साबित हो जाए कि बहू के पास दंपति की संपत्ति का कब्जा है, तो वह देखभाल के लिए जिम्मेदार हो सकती है।
कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि क्या वास्तव में दंपति की संपत्तियां उनके व्यक्तिगत रूप से खरीदी गई थीं या वे फर्म के हिस्से की थीं। इस पर स्पष्टता नहीं आई, और इसलिए कोर्ट ने यह कहा कि इस मुद्दे पर अलग से मुकदमा दायर करना होगा।
कोर्ट ने सुझाव दिया कि दंपति साझेदारी को भंग करने के लिए मुकदमा दायर करें, बजाय इसके कि वे संपत्तियों की वापसी की मांग करें।
अदालत ने यह भी नोट किया कि बहू ने अपनी सास को जीवनभर के लिए गुजारा भत्ता देने पर सहमति जताई, जिससे मामला कुछ हद तक सुलझा।