Budget 2025: देश के सबसे पहले बजट में सरकार को हुआ घाटा, करोड़ो रुपए हुए खर्च
Budget 2025: आजादी के बाद देश के सबसे पहले बजट (1947-48) में सरकार को 26 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था, जो एक घाटे वाला बजट साबित हुआ, खर्च आय से ज्यादा...

TOP HARYANA: दुनिया में सभी देश अपना बजट हर बार एक नए तरीके के साथ में पेश करते है जो उस देश के विकास के लिए ठीक साबित हो सकें। बहुत बार बजट बनाते वक्त कुछ तथ्यों पर ध्यान नहीं जा पाता है, जिससे बजट घाटे में चल जाता है। भारत समेत अधिकांश देशों में बजट में घाटे होने की बात सामने आई है।
देश की आजादी के बाद से ही भारत में घाटे का बजट पेश किया गया है, इसके पीछे मुख्य कारण सरकार की आर्थिक नीतियां और लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए अधिक खर्च करना है। सरकार बजट बनाते समय लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए जरूरत से अधिक खर्च का प्रावधान कर देती है।
घाटे का बजट क्या होता है
घाटे का बजट वह स्थिति होती है जब सरकार की आय उसकी खर्च की योजना से कम होती है। इसे 'घाटे की वित्त व्यवस्था' कहा जाता है जब सरकार को शिक्षा, बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और अन्य कल्याणकारी योजनाओं में निवेश के लिए अधिक धनराशि की आवश्यकता पड़ती है तो वह इस तरह का बजट पेश करती है।
भारत में 2022-23 के बजट में राजस्व घाटा देश की GDP का 6.4 फीसदी तक रहने का अनुमान लगाया गया था, जबकि 2021-22 में यह संशोधित अनुमान 6.9 फीसदी था। भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2024-25 में 6.4 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है, यह आंकड़े बताते हैं कि देश की आय और व्यय के बीच बड़ा अंतर है जो अर्थव्यवस्था को संतुलित करने की एक चुनौती बन रहा है।
आजादी के बाद पहला बजट
आजादी के बाद भारत का पहला बजट 15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 1948 तक के लिए पेश किया गया था, इस बजट में 171 करोड़ रुपये की राजस्व प्राप्ति और 197 करोड़ रुपये के अनुमानित खर्च का प्रावधान किया हुआ था तब से लेकर आज तक यह घाटे का बजट भारत की वित्तीय रणनीति का हिस्सा बना हुआ है।
घाटे के बजट फायदे
घाटे का बजट बहुत सारी लोक कल्याणकारी योजनाओं और आर्थिक विकास को गति देने में सहायक होता है, बुनियादी ढांचे का विकास, रोजगार सृजन और गरीब के लिए कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च, देश की सरकार की प्राथमिकता होती है। परन्तु इसके साथ ही कर्ज बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाता है, अधिक कर्ज लेने से देश की वित्तीय स्थिरता पर दबाव बढ़ता रहता है जो महंगाई और ब्याज दरों में वृद्धि का कारण बन सकता है।