Supreme Court Update: शादी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ, जानें कब तक नहीं मिलेगी मान्यता
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला हिंदू विवाह और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) के तहत विवाह की मान्यता को लेकर महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने यह कहा कि हिंदू विवाह एक 'संस्कार' है, और इसे तब तक कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी जा सकती, जब तक कि यह "उचित रूप में" समारोहों के साथ संपन्न न किया जाए..

Top Haryana: सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला हिंदू विवाह की प्रकृति और उस पर लागू कानूनों को लेकर महत्वपूर्ण है। इस फैसले में कोर्ट ने हिंदू विवाह को एक 'संस्कार' मानते हुए इसे हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तब तक वैध नहीं माना, जब तक इसे उचित रूप में समारोहों के साथ संपन्न नहीं किया जाता। यह फैसला विवाह के महत्व और उसकी कानूनी मान्यता के बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
सुप्रीम कोर्ट का प्रमुख फैसला:
हिंदू विवाह को 'संस्कार' के रूप में मान्यता:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह सिर्फ एक सामाजिक या कानूनी समझौता नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज में एक महान पवित्र संस्कार है। विवाह को धार्मिक रूप से संपन्न किया जाना चाहिए, जिसमें सभी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का पालन किया जाए। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि विवाह के महज गीत, नृत्य और शराब पीने जैसे आयोजनों से उसे वैध नहीं माना जा सकता है। इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए और यह केवल एक 'व्यावसायिक लेन-देन' नहीं है।
सप्तपदी का महत्व:
कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 (1) का हवाला देते हुए कहा कि विवाह तब तक संपन्न नहीं माना जा सकता जब तक कि सप्तपदी (दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के सामने सात कदम उठाना) नहीं की जाती। यह विवाह की वैधता के लिए अनिवार्य संस्कार है। सातवां कदम उठाने के बाद विवाह पूर्ण और बाध्यकारी हो जाता है।
विवाह का धार्मिक पहलू:
कोर्ट ने जोर दिया कि हिंदू विवाह को उचित धार्मिक समारोहों और रीति-रिवाजों के अनुसार ही किया जाना चाहिए। बिना इन अनुष्ठानों के विवाह को हिंदू विवाह के रूप में कानूनी मान्यता नहीं मिल सकती।
युवाओं के लिए चेतावनी:
सुप्रीम कोर्ट ने युवा पुरुषों और महिलाओं से आग्रह किया कि वे विवाह में प्रवेश करने से पहले इस बात पर गंभीरता से विचार करें कि हिंदू विवाह भारतीय समाज में एक पवित्र संस्था है, और इसके बिना किसी भी समारोह के संपन्न किए जाने से यह विवाह नहीं माना जा सकता