Property News: कोई भी परिवार का मेम्बर क्या बेच सकता है सारी प्रॉपर्टी, सुप्रीम कोर्ट!
Surpreme Court: गैर-विभाजित हिंदू परिवार (Joint Hindu Family) में कर्त्ता का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और केंद्रीय रोल होता है। इसे हिंदू कानून के अनुसार, परिवार का प्रमुख माना जाता है, और इसके पास परिवार की संपत्ति से जुड़े कई अहम अधिकार और कर्तव्यों का पालन करने का अधिकार होता है। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से..

Top Haryana: सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला गैर-विभाजित हिंदू परिवार (Joint Hindu Family) और कर्ता के अधिकारों से संबंधित है, जिसमें कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि कर्ता को परिवार की संपत्ति पर निर्णय लेने का अधिकार है, बिना किसी अन्य सदस्य की अनुमति के।
इस फैसले के तहत कर्ता अपनी शक्ति का उपयोग करके जॉइंट प्रॉपर्टी को बेच सकता है या उसे गिरवी रख सकता है, और इसके लिए उसे परिवार के किसी अन्य सदस्य या हमवारिस की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है, चाहे वह सदस्य नाबालिग ही क्यों न हो...
कर्ता का अधिकार:
कोर्ट ने यह कहा कि कर्ता के पास परिवार की संपत्ति को लेकर निर्णय लेने की पूरी शक्ति होती है। इसका मतलब है कि यदि कर्ता परिवार की जॉइंट प्रॉपर्टी को बेचने या गिरवी रखने का फैसला करता है, तो उसे परिवार के अन्य सदस्य से पूछने की जरूरत नहीं होती।
यह अधिकार कर्ता को उसके जन्म से मिलता है और यदि वह स्वयं किसी और को कर्ता नियुक्त करना चाहता है, तो वह अपनी वसीयत में यह निर्णय ले सकता है।
नाबालिग के मामले में भी कर्ता का अधिकार:
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी परिवार का सदस्य नाबालिग हो तो भी कर्ता को बिना उसकी अनुमति के प्रॉपर्टी से संबंधित फैसले लेने का अधिकार रहता है। इसका मतलब है कि कर्ता की शक्ति का दायरा व्यापक है और वह पूरी तरह से परिवार के सम्पत्ति के मामलों में स्वतंत्र होता है।
कोपर्सिनर का दावा:
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर कर्ता परिवार की संपत्ति से संबंधित कोई कदम उठाता है (जैसे कि उसे गिरवी रखना), तो केवल तभी कोपर्सिनर (समान उत्तराधिकारी या हमवारिस) इस पर आपत्ति उठा सकता है, जब कोई गैर-कानूनी कार्य हुआ हो।
यदि कर्ता द्वारा लिया गया फैसला कानूनी है, तो परिवार के अन्य सदस्य, जिनमें महिलाएं और नाबालिग शामिल हैं, इस पर आपत्ति नहीं उठा सकते।
क्या था मामला:
यह मामला 1996 से संबंधित था और इसमें याचिकाकर्ता का कहना था कि उनके पिता ने परिवार की जॉइंट प्रॉपर्टी को गिरवी रखा था। याचिकाकर्ता का दावा था कि यह फैसला गलत था, क्योंकि उनके पिता को बिना परिवार के अन्य सदस्य की अनुमति के यह अधिकार नहीं था।
हालांकि कोर्ट ने यह माना कि कर्ता को यह अधिकार है कि वह परिवार की संपत्ति को लेकर फैसला ले सकता है, और इसे मद्रास हाईकोर्ट द्वारा पहले ही सही ठहराया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को सही माना और इसे चुनौती देने से मना कर दिया।
कब हो सकता है कर्ता के फैसले पर आपत्ति?
जैसे ही कर्ता किसी संपत्ति को बेचता है या गिरवी रखता है, उस पर आपत्ति केवल तभी उठाई जा सकती है जब वह कार्य गैर-कानूनी हो। अगर कर्ता द्वारा लिया गया निर्णय कानूनी तरीके से किया गया है, तो किसी भी सदस्य को इस पर आपत्ति उठाने का अधिकार नहीं होता, सिवाय इसके कि वह इस बात का प्रमाण पेश करे कि निर्णय गैर-कानूनी था।
कर्त्ता की नियुक्ति और अधिकार:
कर्त्ता के अधिकार परिवार के सबसे वरिष्ठ पुरुष सदस्य को प्राप्त होते हैं। यदि कर्ता की मृत्यु हो जाती है, तो उसका स्थान उसके बाद आने वाले परिवार के सबसे सीनियर पुरुष सदस्य द्वारा लिया जाता है।
कभी-कभी कर्ता अपनी वसीयत में यह निर्णय करता है कि उसके बाद कौन कर्ता बनेगा, और परिवार भी सर्वसम्मति से किसी एक सदस्य को कर्ता घोषित कर सकता है।